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11:09 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक शहजादे को विरासत में बेहद दौलत मिल गई। वह ऐयाशी में डूब गया। कोई गुनाह ऐसा नहीं था, जो उसने नहीं किया। एक बार मैंने उसे समझाया,'साहबजादे! आमदनी बहते हुए पानी की तरह है और खर्च पनचक्की की तरह। इसलिए ज्यादा खर्च उसी को मुनासिब है जिसकी आमदनी लगातार होती रहती हो।' मल्लाह एक गीत गाया करते हैं, जिसका मतलब है कि यदि पहाड़ों पर बारिश न हो, तो दजला नदी एक ही साल में सूख जाए। क्योंकि जब यह दौलत खत्म हो जाएगी, तो तू मुसीबत उठाएगा और शर्मिन्दा होगा।'
शहजादे ने मेरी नसीहत नहीं सुनी। कहने लगा, 'मौजूदा आराम को आने वाली परेशानियों से गंदला करना अक्लमन्दों का काम नहीं है। दिल को रौशन करने वाले दोस्त! कल का गम आज नहीं खाना चाहिए। मेरी उदारता की चर्चा सबकी जबान पर है।' मैंने देखा कि वह मेरी नसीहत मानने को हर्गिज तैयार नहीं है। मेरी गर्म सांस उसके ठंडे लोहे पर असर नहीं कर रही थी। इसलिए मैंने और कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा। मैं अक्लमंद लोगों के कहे पर अमल करने लगा कि जो तेरा फर्ज हो उसे दूसरों तक पहुंचा दे। फिर भी अगर वह न माने तो तुझ पर कोई इल्जाम नहीं। खुलासा यह कि जिसका मुझे डर था, वही हुआ। वह इतना गरीब हो गया कि दाने-दाने को मोहताज था। उसे फटेहाल देखकर मेरा दिल भर आया। मैंने दिल ही दिल में कहा-तुच्छ व्यक्ति अपनी मस्ती में डूबा हुआ मुसीबत के दिन की फिक्र नहीं करता। बहार के मौसम में पेड़ फल लुटाते हैं, तभी जाड़ों में उन्हें पतझड़ का सामना करना पड़ता है।     -शेख सादी

अच्छी शिक्षा

5:30 am, Posted by दास्तानें, No Comment

एक बहुत बड़ा विद्वान बादशाह के बेटे को पढ़ाता था। वह उसे बेहद डांटता और मारता रहता था। एक दिन मजबूर होकर लड़के ने पिता के पास जाकर शिकायत की और अपना जख्मी जिस्म भी दिखाया। बादशाह का दिल भर आया। उसने उस्ताद को बुलवाया और कहा, 'तू मेरे बच्चे को जितना झिड़कता और मारता है, इतना आम लोगों के बच्चों को नहीं, इसकी वजह क्या है?'
उस्ताद बोला, 'वजह यह है कि यों तो सोच-समझकर बोलना और अच्छे काम करना सब लोगों के लिए जरूरी है, लेकिन बादशाहों के लिए खासतौर से जरूरी है। जो बात उनकी जुबान से निकलेगी या जो काम उनके हाथ से होगा, वह सारी दुनिया में मशहूर हो जाएगा, जबकि आम लोगों की बात और काम का इतना असर नहीं होता।'
यदि किसी फकीर में सौ ऐब हैं, तो उसके साथी उसका एक ऐब भी न लेंगे, लेकिन बादशाह से एक नाजायज हरकत हो जाए, तो उसकी शोहरत मुल्क के एक सिरे से दूसरे सिरे तक हो जाएगी। 'इसलिए अन्य बच्चों के मुकाबले में बादशाह के बेटे के चरित्र को संवारने की उस्ताद को ज्यादा कोशिश करनी चाहिए।' जिस बच्चे को तू बचपन से अदब नहीं सिखाएगा, वह जब बड़ा होगा, तो उसमें कोई गुण नहीं होगा। जब तक लकड़ी गीली रहती है, उसे कैसे ही मोड़ लो। जब वह सूख जाती है, तो आग में रखकर ही उसे सीधा किया जा सकता है। जो लड़का सिखाने वाले का जुल्म बर्दाश्त नहीं कर सकता, उसे जमाने का जुल्म बर्दाश्त करना पड़ता है। बादशाह को उस काबिल उस्ताद की बात पसंद आई। उसने खुश होकर इनाम दिया।     -शेख सादी

उस्ताद का जुल्म

10:55 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

पश्चिम के मुल्क में मैंने एक मदरसे में ऐसे उस्ताद को देखा जो बेहद चिड़चिड़ा, बच्चों को सताने वाला और कमअक्ल था। मुसलमान उसे देखकर बहुत दुखी होते। उसके सामने न किसी की हंसने की हिम्मत होती थी और न बात करने की। कभी वह किसी के गाल पर तमाचा मार देता और कभी किसी की पिंडली को शिकंजे में कस देता। जब लोगों को उसकी ज्यादतियों का पता चला तो उन्होंने उसे मार-मारकर वहां से निकाल दिया।
उस मदरसे में एक नेक आदमी पढ़ाने के लिए रख दिया गया। यह आदमी परहेजगार था। कभी किसी से ऐसी बात नहीं कहता था, जिससे उसे तकलीफ पहुंचती। बच्चों के दिल में पहले उस्ताद का जो डर था, वह निकल गया। नए उस्ताद को उन्होंने फरिश्ते की तरह नेक पाया। नतीजा यह हुआ कि हर लड़का शैतान बन गया। उस्ताद की शराफत का फायदा उठाकर उन्होंने पिछला पढ़ा-लिखा भी सब भुला दिया।
पढ़ाने वाला उस्ताद जब बच्चों पर सख्ती करना बन्द कर देता है, तो बच्चे बाजार में जाकर मदारी बन जाते हैं।
दो हफ्ते बाद मैं उस मदरसे की तरफ से गुजरा। मैंने देखा कि अब वे लोग पहले वाले उस्ताद को मनाकर वापस ले आए थे। मैंने लाहौल पढ़ा और लोगों से पूछा कि उस शैतान को फिर से फरिश्तों का उस्ताद क्यों बना दिया गया?
एक मसखरे और तजुर्बेकार बूढ़े ने मुझे जवाब दिया, 'एक बादशाह ने अपने बेटे को मकतब में बैठाया और उसकी बगल में चांदी की तख्ती दे दी, उसके हाथों सोने के पानी से उस तख्ती पर लिखवाया गया- 'उस्ताद का जुल्म बाप की मुहब्बत से बेहतर है।'    -शेख सादी

उदारता

11:51 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

मैंने एक गुम्बद पर घास से बंधे हुए कुछ ताजे फूलों के गुलदस्ते रखे हुए देखे। मैंने घास से कहा, 'तू फूलों के साथ रहने योग्य कहां थी!'
वह रो पड़ी और बोली, 'चुप रह! शराफत का अर्थ यह नहीं है कि दोस्ती को भुला दिया जाए। माना कि मुझ में सुन्दरता, रंग और खुशबू नहीं है, किन्तु क्या मैं भी उसी बाग की घास नहीं हूं, जिसमें ये फूल खिलते है?'
इसी प्रकार मैं उस खुदा के दरबार का गुलाम हूं, जो बड़ा रहीम है। मैं उसी की नेमतों का पला हुआ हूं। मुझे उस मालिक से सदा मेहरबानी की उम्मीद है। मेरे पास कोई पूंजी नहीं है और मैंने उसकी सेवा का पुण्य भी नहीं कमाया है, किन्तु वह मेरी जरूरतों को समझता है और यह भी जानता है कि मेरा उसके सिवा और कोई सहारा नहीं है। नियम है कि जब गुलाम बूढ़ा हो जाता है, तो मालिक उसे आजाद कर देता है। ऐ दुनिया बनाने-संवारने वाले सर्वशक्तिमान खुदा! तू महान है। तू अपने बूढ़े गुलाम 'सादी' को बख्श दे। ऐ सादी! तू खुदा की मर्जी पर भरोसा कर। तेरे लिए यही काबा है। तू तो खुदा का गुलाम है। उसी के रास्ते पर चल। जो इस दरवाजे से मुंह मोड़ेगा, वह अभागा है। उसे और कोई दरवाजा नहीं मिलेगा। एक आलम से लोगों ने पूछा, 'उदारता और पराक्रम में कौन-सा गुण श्रेष्ठ है?' उसने उत्तर दिया, 'जिसके पास उदारता है, उसे पराक्रम की आवश्यकता नहीं।'
बहराम गौर की कब्र पर लिखा हुआ है कि सखावत यानी उदारता का हाथ जोर के बाजू से बेहतर है। हातिमताई तो न रहा, लेकिन उसका नेक नाम उसकी दरियादिली के कारण अमर रहेगा।    - शेख सादी

फकीर कौन

11:46 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक बादशाह मन-ही-मन फकीरों से नफरत करता था। एक समझदार फकीर इस बात को ताड़ गया। उसने कहा, 'ऐ बादशाह! हम लोग तुझसे, अधिक सुखी हैं। तेरे पास बहुत बड़ी सेना जरूर है, लेकिन मरेंगे हम और तू दोनों ही। अल्लाह ने चाहा, तो कयामत के दिन हमारी दशा तुझसे अच्छी होगी। 'दुनिया को जीतने वाला अपने इरादों में कामयाब हो सकता है, और फकीर रोटी को भी मोहताज रह सकता है, लेकिन जब मौत आएगी, तो कब्र में कफन के सिवा किसी के साथ कुछ भी न जाएगा।' जब एक दिन तेरी बादशाहत खत्म ही होगी, तो अच्छा है कि तू अभी फकीरी ले ले। देखने में फकीरी महज एक गूदड़ी और मुंडा हुआ सिर है, किन्तु उसका फल अपने मन को जीतना और शान्ति पाना है। वह फकीर नहीं है, जो फकीर होने का दावा तो करे, किन्तु लोग उसकी न सुनें, तो उनसे लड़ने के लिए खड़ा हो जाए। फकीरों में खुदा को याद करना, उसकी नेमतों का शुक्रिया अदा करना, उसकी खिदमत करना, इन सब गुणों का होना जरूरी है, जिसमें ये सब गुण हों, वही सच्चा फकीर है। भले ही वह शाही पोशाक पहनता हो।
दूसरी ओर, जो दिन-भर मारा-मारा फिरे, नमाज न पढ़े, इच्छाओं का गुलाम हो, लालची हो, दिन-भर कामवासनाओं से घिरा रहे, जो भी हाथ लगे उड़ा ले और जो भी मुंह में आए बक डाले वह ऐयाश है। फकीर नहीं, चाहे वह गूदड़ी ही क्यों न पहनता हो। तेरा दिल तो साफ है नहीं और तूने कपड़े फकीरों के पहन रखे हैं। इस ढोंग से तुझे क्या मिलेगा? दरवाजे पर तू सतरंगे पर्दे मत लटका, यदि तेरे घर के अन्दर बिछाने के लिए टाट के सिवा कुछ भी नहीं है।     - शेख सादी

असली फकीर

11:45 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक बादशाह किसी मुसीबत में फंसा हुआ था, उसने मानता मानी कि यदि उसकी मुसीबत टल गई, तो वह बहुत-सा धन फकीरों में बांट देगा। सौभाग्य से उसकी मुराद पूरी हो गई। उसने अपने एक विश्वासपात्र गुलाम को दिरहमों  की थैली देकर कहा, 'जा, फकीरों में बांट आ।' लोग कहते हैं कि गुलाम बड़ा समझदार था। वह सारे दिन इधर-उधर घूमता फिरा। शाम को लौटने पर उसने दिरहमों की थैली को चूमकर बादशाह के कदमों में रखते हुए कहा, 'हुजूर, मैंने बहुत तलाश किया, लेकिन मुझे कोई फकीर मिला ही नहीं।' बादशाह ने कहा, 'यह कैसे हो सकता है? मेरे हिसाब से इस मुल्क में चार सौ से ज्यादा फकीर हैं।'
गुलाम ने कहा, 'ऐ दुनिया के मालिक! जो असली फकीर है, वह तो धन लेता नहीं और जो धन चाहता है, वह असली फकीर नहीं।' बादशाह हंसा और कहने लगा, 'फकीरों और खुदापरस्तों में मुझे जितनी श्रद्धा है, इस शैतान को उनसे उतनी ही दुश्मनी है, लेकिन बात इसी की ठीक है।'
जो फकीर दिरहम और दीनार ले ले, उसको तू छोड़ दे और दूसरे की तलाश कर। एक बात और, जब तक 'और चाहिए' की हवस बाकी है, किसी को फकीर और परहेजगार कहना ठीक नहीं। फकीर को न दिरहम चाहिए, न दीनार। यदि वह दरम और दीनार तलाश करने लगे, तो दूसरा फकीर तलाश करना चाहिए। जो खुदा से ही लौ लगाए रखता है, वह भीख के टुकड़ों के बिना भी अपनी फकीरी में मस्त रहता है। खूबसूरत अंगुली और कान की लौ, फीरोजे की अंगूठी और कुंडल के बिना भी अच्छी लगती है।    
                                                   -शेख सादी

नसीहत

11:32 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक आलिम ने अपने वालिद से कहा, 'वाइजो' (धर्मोपदेशक) की लच्छेदार बातों का मेरे दिल पर कोई असर नहीं होता, क्योंकि उनके कौल (कथनी) और फेल (करनी) में बड़ा अन्तर होता है। दुनिया को वे दुनिया छोड़ने की नसीहत करते हैं और खुद अनाज और चांदी बटोरते फिरते हैं। जो वाइज सिर्फ 'वाज' ही देना जानता है और खुद उस पर अमल नहीं करता, उसके वाज का किसी पर असर नहीं होता। आलिम वही है, जो बुरे काम न करे। वह नहीं, जो महज दूसरों को नसीहत करे और खुद उस पर अमल न करे। जो आलिम एयाशी की जिन्दगी गुजारता है और खुद भटका हुआ है, वह दूसरों को क्या रास्ता दिखाएगा।'
  वालिद ने कहा, 'ऐ बेटे! महज इस खयाल से कि वाइजों के कौल और फेल में फर्क  होता है, तुझे उनकी नसीहतों से नफरत नहीं करनी चाहिए। और न उनके फायदे से महरूम रहना चाहिए। 'तुमने उस अन्धे की मिसाल नहीं सुनी? वह कीचड़ में फंस गया था और कह रहा था, ऐ मुसलमानो! मेरे रास्ते में एक चिराग रख दो।' किसी ने उससे पूछा, 'जब तुझे चिराग ही नहीं दिखता, तो चिराग से तू क्या देखेगा?' वाइज की मजलिस बजाज की दुकान की तरफ है। जब तक तू कुछ नकद लेकर न जाएगा, तुझे कुछ नहीं मिलेगा। अकीदत के साथ नसीहत सुने बिना तेरे पल्ले कुछ न पड़ेगा।
आलिम वाइज के कौल और फेल में फर्क  हो, तो भी उसकी बात दिल से सुनो। 'तू यह गलत कहता है कि सोया हुआ सोए हुए को नहीं जगा सकता।' तुझे चाहिए कि नसीहत यदि दीवार पर लिखी हुई हो, तो उसे भी तत्काल अपने कानों में डाल ले।
      शेख सादी   

बुरे साथी

1:48 am, Posted by दास्तानें, No Comment

  मैं अपने दमिश्क के दोस्तों के साथ रहते-रहते इतना ऊब गया कि कुद्स के जंगल की ओर निकल गया। वहां रहकर मैं जानवरों से प्रेम करने लगा। दुर्भाग्य से मुझे फिरंगियों ने कैद कर लिया और यहूदियों के साथ मुझे भी तराबलस में एक खाई की मिट्टी निकालने के काम पर लगा दिया। उधर से हलब का एक रईस गुजरा। वह मुझे पहचान गया और बोला, 'क्या हाल है? यह तकलीफ क्यों उठा रहा है?' मैंने कहा, 'क्या बताऊं? मैं जंगल की तरफ इसलिए भागा कि मेरा दिल खुदा से लगा रहे, लेकिन यहां मुझे अस्तबल में जानवरों के साथ बांध दिया गया।' उसे मेरी हालत पर रहम आ गया और दस दीनार देकर मुझे फिरंगियों की कैद से छुड़ा लिया। इसके बाद वह मुझे अपने घर ले आया। उसकी एक बेटी थी, जिसकी सौ दीनार महर पर मेरे साथ शादी कर दी। कुछ समय बाद मेरी बीवी मेरे साथ दुर्व्यवहार करने लगी। उसने मेरी जिंदगी दूभर कर दी। यदि किसी भले आदमी के घर में बदजबान औरत हो, तो उसके लिए दोजख यहीं है। बुरे साथी से खुदा बचाए।
एक दिन मेरी बीवी ताना देने लगी, 'क्या तू वही आदमी नहीं, जिसे मेरे वालिद ने दस दीनार देकर कैद से छुड़ाया था?' मैंने कहा, 'हां, मैं वही हूं जिसे तेरे वालिद ने दस दीनार के बदले फिरंगियों से छुड़ाया और फिर सौ दीनार में तेरे हाथों गिरफ्तार करा दिया।' मैंने सुना कि एक बुजुर्ग ने बकरी को भेडि़ए के पंजे से छुड़ाया और रात को उसके गले पर छुरी फेर दी। बकरी कहने लगी - ऐ जालिम, भेडि़ए के पंजे से तूने मुझे छुड़ा लिया, लेकिन मेरी समझ में तू खुद भेडिय़ा था।
    -शेख सादी

दौलत

11:32 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक फकीर जंगल के एक कोने में अकेला बैठा था। उधर से एक बादशाह गुजरा। फकीर ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। बादशाह का रोब फकीर पर न चला। यह देखकर बादशाह को क्रोध आ गया। वह कहने लगा, 'ये गुदड़ी पहनने वाले जानवर हैं। न इनमें लियाकत है और न इंसानियत!' बादशाह के साथ उसका वजीर भी था। वह फकीर के पास आकर बोला, 'खुदा के बन्दे! दुनिया का मालिक बादशाह तेरे पास से गुजरा, पर तूने उसका अदब नहीं किया और न कोई खिदमत की!'
फकीर बोला, 'बादशाह से कह देना कि वह अदब और खिदमत की उम्मीद उससे रखे, जिसे उससे कुछ इनाम पाने की गरज हो। दूसरी बात यह कि बादशाह रिआया की हिफाजत के लिए होता है। रिआया उसकी खिदमत के लिए नहीं होती।' बादशाह फकीर का चौकीदार है। भेड़ चरवाहे के लिए नहीं होती। चरवाहा उसकी देखभाल के लिए होता है। यदि एक को अपनी इच्छा के अनुसार सब-कुछ मिला हुआ है और दूसरे का दिल रंज और तकलीफ से जख्मी हो रहा है, तो थोड़े दिन ठहर जा। तू देखेगा कि जालिम के सिर को मिट्टी खा गई। यदि कोई कब्रों को खोदकर देखे तो अमीर और फकीर में अन्तर करना सम्भव नहीं होगा। बादशाह को फकीर की बात अच्छी लगी। उसने फकीर से कहा, 'मुझसे कुछ मांग?' फकीर बोला, 'मैं तुमसे यही चाहता हूं कि तुम दुबारा मुझे परेशान न करो।' बादशाह ने कहा, 'अच्छा मुझे कुछ नसीहत कर।' फकीर बोला, 'कुछ कर ले, क्योंकि अभी तो दौलत तेरे पास है। दौलत और मुल्क हाथोहाथ चलते रहते हैं, सदैव किसी एक के पास नहीं रहते।    
                                                    शेख सादी

परिन्दा

10:31 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

सुबह एक परिन्दा चहचहा रहा था। उसने मेरी अक्ल, मेरा सब्र व मेरे होशो-हवास सब खो दिए। जब मेरे एक दोस्त को मालूम हुआ तो वह बोला, 'मुझे यकीन नहीं होता कि परिन्दे की आवाज से इंसान कैसे बेखुद हो सकता है?' मैंने कहा, 'इंसान के लिए यह मुनासिब नहीं है कि परिन्दे तो तस्बीह पढ़ रहे हों और वह चुपचाप बैठा रहे।'
एक बार हजाज के सफर में मेरे साथ कुछ फकीर भी जा रहे थे। रास्ता काटने के लिए वे सभी गाना गाते और शेर पढ़ते जा रहे थे। इसी काफिले में एक फकीर था, जो सबसे अलग-अलग रहता था। वह अपने ऊंट पर बैठा अकेला चला जा रहा था। जब हम नखेल-बनी-हलाल पर पहुंचे तो अरब के किसी कबीले से एक हब्शी लड़का निकला। उसने अल्लाह को पुकारते हुए ऐसा गाना गाया कि पक्षी आकाश से उतर आए। मैंने देखा, उस फकीर का ऊंट मस्त होकर नाचने लगा और उसे जमीन पर पटककर जंगल की ओर भाग गया। मैंने उस फकीर से कहा, 'शेख साहब! उस हब्शी ने अल्लाह की प्रशंसा में जो गाना गाया उससे जानवर तक प्रभावित हो गए; किंतु आप वैसे के वैसे ही रहे।'
जानते हो मुझसे सुबह के वक्त चहचहाने वाली बुलबुल ने क्या कहा? उसने मुझसे कहा, 'तू कैसा आदमी है, जो इश्क से बेखबर है? अरबी शेर से ऊंट भी मस्ती में आ जाते हैं और खुदा की याद में खो जाते हैं। जंगल में जब हवा चलती है, तो बान की शाखें झूमने लगती है; किंतु पत्थर ज्यों का त्यों रहता है। संसार की हर चीज उसे पैदा करने वाले का नाम ले-लेकर शोर मचा रही है; लेकिन इसे सुनता वही है, जिसके कान सुन सकते हों।'   
                    शेख सादी

संतोष कीजिए

11:25 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक बादशाह मरते दम तक किसी को अपना वारिस नहीं बना सका। अन्तिम समय में उसने घोषणा की कि उसकी मृत्यु के अगले दिन सुबह जो व्यक्ति सबसे पहले उस शहर के दरवाजे से प्रवेश करे, उसी को बादशाह बना दिया जाए। संयोग से वह व्यक्ति एक फकीर था, जिसने फटे चीथड़ों पर पैबन्द लगाकर शरीर ढका था। वजीरों और जमीरों ने उसी के सिर पर ताज रख दिया। एक दिन उसका एक पुराना साथी उधर आ निकला और उससे बोला, 'अल्लाह का लाख-लाख शुक्र है कि तेरे नसीब ने जोर मारा और तुझे बादशाहत मिल गई। तेरे पैरों के कांटे निकल गए और तुझे उनके स्थान पर फूल मिले। किसी ने ठीक कहा है कि मुसीबत के बाद सुख के दिन आते हैं।' कली कभी फूल बन जाती है और कभी मुरझाकर गिर जाती है। पेड़ कभी नंगा हो जाता है और कभी पत्तियों से लद जाता है।
वह बोला, 'अरे भाई, मेरे साथ हमदर्दी कर और मेरे लिए दुआ कर। जब तूने मुझे पहले देखा था, तब मुझे केवल एक रोटी की चिन्ता थी। अब दुनिया भर की है। दरअसल, इस दुनिया से बढ़कर कोई मुसीबत नहीं है। यह न मिले, तो दुख देती है और मिले, तो भी दुख देती है। यदि तू धनवान होना चाहता है, तो सन्तोष कर।' यदि अमीर दामन भर कर सोना लुटा दे, तो इसे कोई बहुत बड़ा काम मत समझ। मैंने सुना है कि फकीर का सब्र अमीर की खैरात से कहीं बढ़कर है। यदि बहराम (इराक का एक विलासी बादशाह) एक गोरखर (जंगली गधा) भी भून कर ले आए, तो उसकी कीमत टिड्डी के उस पैर के बराबर भी नहीं होगी, जिसे एक चींटी घसीटकर ले आती है।     शेख सादी