tag:blogger.com,1999:blog-15689317434523157822024-03-13T20:05:54.726-07:00दास्तानेंदास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-1715422208561240722011-07-30T00:57:00.000-07:002011-07-30T06:15:52.055-07:00एक छिपकली की हमदर्दी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/-Pcddp_wF9G4/TjQCpxgmzeI/AAAAAAAAAAQ/AavVnoZoJjc/s1600/-two-lizards-linked-by-tails-for-tatoo.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="http://4.bp.blogspot.com/-Pcddp_wF9G4/TjQCpxgmzeI/AAAAAAAAAAQ/AavVnoZoJjc/s200/-two-lizards-linked-by-tails-for-tatoo.jpg" width="200" /></a></div><a href="http://3.bp.blogspot.com/-Jbf7HmccSCg/TjO4LdNU04I/AAAAAAAAAAM/VrQTIK2Nueo/s1600/-two-lizards-linked-by-tails-for-tatoo.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><br />
</a><br />
<br />
एक जापानी अपने मकान की मरम्मत के लिए उसकी दीवार को खोल रहा था। ज्यादातर जापानी घरों में लकड़ी की दीवारो के बीच जगह होती है।<br />
जब वह लकड़ी की इस दीवार को उधेड़ रहा तो उसने देखा कि वहां दीवार में एक छिपकली फंसी हुई थी। छिपकली के एक पैर में कील ठुकी हुई थी। उसने यह देखा और उसे छिपकली पर रहम आया। उसने इस मामले में उत्सुकता दिखाई और गौर से उस छिपकली के पैर में ठुकी कील को देखा।<br />
अरे यह क्या! यह तो वही कील है जो दस साल पहले मकान बनाते वक्त ठोकी गई थी।<br />
यह क्या !!!!<br />
क्या यह छिपकली पिछले दस सालों से इसी हालत से दो चार है?<br />
दीवार के अंधेरे हिस्से में बिना हिले-डुले पिछले दस सालों से!! यह नामुमकिन है। मेरा दिमाग इसको गवारा नहीं कर रहा।<br />
उसे हैरत हुई। यह छिपकली पिछले दस सालों से आखिर जिंदा कैसे है!!! बिना एक कदम हिले-डुले जबकि इसके पैर में कील ठुकी है!<br />
उसने अपना काम रोक दिया और उस छिपकली को गौर से देखने लगा।<br />
आखिर यह अब तक कैसे रह पाई और क्या और किस तरह की खुराक इसे अब तक मिल पाई।<br />
इस बीच एक दूसरी छिपकली ना जाने कहां से वहां आई जिसके मुंह में खुराक थी।<br />
अरे!!!!! यह देखकर वह अंदर तक हिल गया। यह दूसरी छिपकली पिछले दस सालों से इस फंसी हुई छिपकली को खिलाती रही।<br />
जरा गौर कीजिए वह दूसरी छिपकली बिना थके और अपने साथी की उम्मीद छोड़े बिना लगातार दस साल से उसे खिलाती रही।<br />
<br />
आप अपने गिरेबां में झांकिए क्या आप अपने जीवनसाथी के लिए ऐसी कोशिश कर सकते हैं?<br />
सोचिए क्या तुम अपनी मां के लिए ऐसा कर सकते हो जो तुम्हें नौ माह तक परेशानी पर परेशानी उठाते हुए अपनी कोख में लिए-लिए फिरती है?<br />
और कम से कम अपने पिता के लिए, अपने भाई-बहिनों के लिए या फिर अपने दोस्त के लिए?<br />
गौर और फिक्र कीजिए अगर एक छोटा सा जीव ऐसा कर सकता है तो वह जीव क्यों नहीं जिसको ईश्वर ने सबसे ज्यादा अक्लमंद बनाया है?</div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-10911769175979280872011-07-20T04:11:00.000-07:002011-07-20T04:11:29.812-07:00मेहनतएक सौदागर व्यापार करने के मकसद से घर से निकला। उसने एक अपाहिज लोमड़ी देखी, जिसके हाथ-पैर नहीं थे, फिर भी तंदरुस्त। सौदागर ने सोचा, यह तो चलने-फिरने से भी मजबूर है, फिर यह खाती कहां से है? <br />
अचानक उसने देखा कि एक शेर, एक जंगली गाय का शिकार करके उसी तरफ आ रहा है। वह डर के मारे एक पेड़ पर चढ़ गया। शेर लोमड़ी के करीब बैठकर ही अपना शिकार खाने लगा और बचा-खुचा शिकार वहीं छोड़कर चला गया। लोमड़ी आहिस्ता-आहिस्ता खिसकते हुए बचे हुए शिकार की तरफ बढ़ी और बचे खुचे को खाकर अपना पेट भर लिया। सौदागर ने यह माजरा देखकर सोचा कि सर्वशक्तिमान ईश्वर जब इस अपाहिज लोमड़ी को भी बैठे-बिठाए खाना-खुराक देता है तो फिर मुझे घर से निकलकर दूर-दराज इस खाना-खुराक के इंतजाम के लिए भटकने की क्या जरूरत है? मैं भी घर बैठता हूं। वह वापस चला आया।<br />
कई दिन गुजर गए लेकिन आमदनी की कोई सूरत नजर नहीं आई। एक दिन घबराकर बोला-ऐ मेरे पालक अपाहिज लोमड़ी को तो खाना-खुराक दे और मुझे कुछ नहीं। <br />
आखिर ऐसा क्यों? उसे एक आवाज सुनाई दी, 'ऐ नादान हमने तुझको दो चीजें दिखाई थीं। एक मोहताज लोमड़ी जो दूसरों के बचे-खुचे पर नजर रखती है और एक शेर जो मेहनत करके खुद शिकार करता है। तूने मोहताज लोमड़ी बनने की तो कोशिश की, लेकिन बहादुर शेर बनने की कोशिश न की। शेर क्यों नहीं बनते ताकि खुद भी खाओ और बेसहारों को भी खिलाओ।' यह सुनकर सौदागर फिर सौदागरी को चल निकला।दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-67459957310284744972011-07-03T23:36:00.000-07:002011-07-03T23:41:33.471-07:00चुग़लख़ोर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="color: #ff6600; font-size: 180%;"></span>“गुरुजी, मेरा सहपाठी मुझसे जलता है. जब मैं ‘हदीस’ के कठिन शब्दों के अर्थों को बताता हूँ तो वह जल-भुन जाता है.” शेख सादी ने अपने शिक्षक से कहा.<br />
गुरूजी बहुत नाराज हुए – “अरे नासमझ, तू अपने सहपाठी पर उंगली उठाता है, पर अपनी ओर नहीं देखता. मुझे यह समझ में नहीं आया कि तुझे किसने बताया कि लोगों के पीठ पीछे निन्दा करना अच्छा है? अगर उसने कमीने पन से अपने लिए नरक का रास्ता चुना है तो चुग़लख़ोरी की राह से तू भी तो वहीं पहुँचेगा.”<br />
*-*-*<br />
<br />
<span style="color: #ff6600; font-size: 180%;"><span style="color: blue; font-size: large;">चुग़ली</span></span><br />
एक आदमी एक दिन किसी समझदार आदमी के सामने चुगली कर रहा था. उसने कहा “तुम मेरे सामने दूसरों की बुराई कर रहे हो. यह अच्छी बात नहीं है. यह ठीक है कि जिसकी बुराई तुम मुझे बता रहे हो, उसके बारे में मेरे मन में विचार खराब हो जाएंगे, परंतु तुम्हारे बारे में भी मेरे विचार खराब हो जाएंगे. मैं सोचने लग गया हूँ कि तुम भी अच्छे आदमी नहीं हो.” <span style="color: red;">शेख सादी</span></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-92196729608147667212011-07-03T23:33:00.000-07:002011-07-03T23:41:04.912-07:00बुद्धिमानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="color: #ff6600; font-size: 180%;"></span>एक बादशाह ने एक विदेशी क़ैदी को मृत्युदंड दे दिया. क़ैदी को यह बहुत नागवार गुजरा और यह समझ कर कि उसे तो अब मरना ही है, बादशाह को अपनी भाषा में खूब गालियां देने लगा.<br />
बादशाह ने वज़ीर से पूछा – “यह क्या बक रहा है?”<br />
<br />
वज़ीर ने कहा – “हुजूर यह कह रहा है कि जो आदमी क्रोध को अपने वश में रखता है और जो दूसरों के गुनाहों को माफ कर देता है, अल्लाह उस पर मेहरबान होता है.”<br />
<br />
बादशाह को कुछ अक्ल आई, और उसने क़ैदी को छोड़ देने का हुक्म दिया.<br />
एक दूसरा भी वज़ीर वहाँ बैठा था. उसने बीच में टोका – “नहीं हुजूर, इसने आपसे झूठ कहा है. जहाँपनाह, क़ैदी को छोड़ें नहीं, दरअसल यह क़ैदी आपको तमाम गालियां दे रहा था.”<br />
बादशाह ने उत्तर दिया - “तुम्हारी सच्ची बात से इसकी झूठी बात मुझे अधिक पसन्द आई. इसके झूठ के पीछे सद् विचार हैं. जबकि तुम्हारी सच्चाई किसी की बुराई पर टिकी है.” <span style="color: red;">शेख सादी</span></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-2072292196747440902011-07-03T23:32:00.000-07:002011-07-03T23:40:42.118-07:00सर्वोत्तम इबादत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="color: #ff6600; font-size: 180%;"></span><br />
एक बादशाह अत्यंत अत्याचारी था. एक बार उसने एक फ़क़ीर से पूछा - “मेरे लिए सबसे अच्छी इबादत क्या होगी?”<br />
फ़क़ीर बोला - “तुम जितना अधिक सो सको, सोया करो. तुम्हारे लिए यही सबसे बड़ी इबादत है.”<br />
बादशाह को अचरज हुआ. बोला - “यह कैसी इबादत है? भला सोते रहने में कैसी इबादत? फ़क़ीर यह कैसी आराधना तुम मुझे बता रहे हो?”<br />
फ़क़ीर मुस्कराते हुए बोला - “मैं फिर से कहता हूँ कि तुम्हारे लिए यही सर्वोत्तम इबादत है. जितनी देर तक तुम सोते रहोगे, उतनी देर तक लोग तुम्हारे अत्याचार से बचे रहेंगे” <span style="color: red;">शेख सादी</span></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-85445898630639834342011-07-03T23:30:00.000-07:002011-07-03T23:40:14.001-07:00सच्ची कविता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="color: #ff6600; font-size: 180%;"></span>एक कवि थे. जिसके सामने होते, उसकी प्रशंसा में कविता कर उसे सुनाते. बदले में उन्हें इनाम में जो कुछ मिलता, उससे गुजर-बसर आराम से चल रहा था.<br />
<br />
एक बार वह डाकुओं के डेरे पर जा पहुँचे. डाकुओं के सरदार की प्रशंसा में कवि कविता सुनाने लगे.<br />
<br />
डाकुओं के सरदार ने कहा - “इस मूर्ख को पता नहीं है कि हम डाकू हैं – खून-खराबा, लूटपाट हमारा पेशा है – और यह हमारी झूठी तारीफ़ों के पुल बाँध रहा है. इसे नंगा कर डेरे के बाहर फेंक दो.”<br />
<br />
नंगे कवि को देख कुत्ते भौंकने लगे. कुत्तों को मार-भगाने के लिए कवि ने पास ही का पत्थर उठाना चाहा, परंतु वह जमीन में धंसा हुआ था. कवि गुस्से में चिल्लाया “कैसे हरामजादे हैं यहाँ के लोग. कुत्तों को तो खुला छोड़ देते हैं, और पत्थरों को जमीन पर गाड़ कर रखते हैं.”<br />
<br />
सरदार उसे देख रहा था. उसने कवि की गुस्से में भरी ये बातें सुनीं तो वह हँस पड़ा. कवि को वापस बुलवाया और कहा - “तुम तो बड़े बुद्धिमान मालूम होते हो. चलो, तुम्हारी इच्छा पूरी की जाएगी. जो चाहते हो मांगो.”<br />
<br />
कवि बोला - “मुझे मेरे कपड़े वापस कर दीजिए, और मुझे आराम से जाने दीजिए बस”<br />
<br />
सरदार बोला - “बस, अरे भाई कुछ और मांगो.”<br />
<br />
कवि बोला - “कामना किसी भले मानस से ही की जाती है. आप डाकू हैं – इंसानियत के दुश्मन – लुटेरे...” भय और गुस्से से उसकी आवाज़ कांप रही थी.<br />
<br />
सरदार ठठाकर हँसा. बोला “कवि महोदय, यह जो तुमने अभी कहा वही तुम्हारी सच्ची कविता है. सच्ची कविता वही है जिसमें सच्ची बात कही जाए” <span style="color: red;">शेख सादी</span></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-20052040115685604802011-07-03T23:28:00.001-07:002011-07-03T23:39:14.474-07:00सच्चा फ़क़ीर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="color: #ff6600; font-size: 180%;"></span>एक बार एक बादशाह ने नौकर को मोहरों की थैली देते हुए कहा - “ले, जा इन मोहरों को फ़क़ीरों में बांट आ.”<br />
<br />
नौकर सारा दिन मोहरें बांटने के लिए तमाम जगह घूमता रहा और देर रात को वापस आया. बादशाह ने उसके हाथ में मोहरों से वैसी ही भरी हुई थैली देखकर पूछा - “क्यों मोहरें नहीं बांटीं क्या? इन्हें वापस क्यों ले आए?”<br />
<br />
“हुजूर, मैंने फ़क़ीरों को बहुत ढूंढा, परंतु मुझे कोई फ़क़ीर मिले ही नहीं जिन्हें मोहरें दी जा सकें.” नौकर ने उत्तर दिया.<br />
<br />
बादशाह का पारा गरम हो गया – वह गरजे - “क्या बकवास करता है – फ़क़ीरों का भी कोई टोटा है – सैकड़ों फ़क़ीर राह चलते ही मिल जाते हैं.”<br />
<br />
“आप सही फ़रमा रहे हैं जहाँपनाह – पर मैं सच कहता हूँ, मैंने सारा दिन छान मारा – जो फ़क़ीर थे, उन्होंने ये मोहरें लेने से इनकार कर दिया और जो लेना चाहते थे वे तो किसी हाल में फ़क़ीर नहीं थे. अब बताएं मैं क्या करता?” नौकर ने सफाई दी.<br />
<br />
बादशाह को अपनी भूल का अहसास हुआ. सच्चे फ़क़ीर धन से दूर रहते हैं. <span style="color: red;">शेख सादी</span></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-69634618419216739662011-07-03T23:26:00.000-07:002011-07-03T23:38:43.304-07:00चाहत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">एक धनी बूढ़ा था. उसने शादी नहीं की थी. लोग उससे कहते – “अब तो बुढ़ापे में सहारे के लिए शादी कर लो मियाँ”<br />
“किसी बुढ़िया से शादी करने को जी नहीं करता” बूढ़ा कहा करता.<br />
<br />
“तो फिर किसी जवान से ही कर लो” लोग कहते - “औरतों की कोई कमी है क्या?”<br />
<br />
बूढ़े का उत्तर होता - “जब मैं बूढ़ा किसी बुढ़िया से शादी करने की नहीं सोच सकता तो मैं कैसे सोच सकता हूँ कि कोई जवान मुझ बूढ़े से राज़ी खुशी, बिना लालच शादी करेगी” <span style="color: red;">शेख सादी</span></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-1620532348808603612011-06-27T23:20:00.000-07:002011-06-27T23:28:55.368-07:00बेईमानी से भय<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">मेरा एक दोस्त मुझसे शिकायत करने लगा, 'जमाना बड़ा खराब है। मेरी आमदनी थोड़ी है और बाल-बच्चे ज्यादा। कहां तक सहा जाए? भूखों मरा नहीं जाता। कई बार मन में आता है कि परदेस चला जाऊं। सुख-दुख में जैसे भी हो, वहां गुजर कर लूं। किसी को मेरे अच्छे या बुरे हाल का पता भी नहीं चलेगा।' न जाने कितने लोग भूखे सो जाते हैं और किसी को खबर भी नहीं होती। न जाने कितने मृत्यु-शय्या पर पड़े होते हैं और कोई उन्हें रोने वाला भी नहीं होता। 'परन्तु मुझे भय है कि पीठ पीछे मेरे शत्रु खुश हो-होकर मेरी हंसी उड़ाएंगे, मुझे ताने देंगे और कहेंगे कि 'वह आदमी कितना बेमुरव्वत है! खुद तो चला गया और बेचारे बाल-बच्चों को यहां मुसीबत उठाने के लिए छोड़ गया।' उस बेशर्म को देखो! वह कभी खुशहाल न होगा, जो अपने खुद के आराम के लिए बीवी-बच्चों को मुसीबत में छोड़ गया।<br />
'आपको मालूम है कि मुझे थोड़ा-बहुत हिसाब-किताब का काम आता है। यदि आपकी सहायता से मुझे कोई काम मिल जाए, तो मैं आपका आभारी रहूंगा।' मैंने कहा, 'मेरे भाई, बादशाह की नौकरी में दो बातें हैं- रोटी की उम्मीद और जान का खतरा, अक्लमन्दों की राय है कि रोटी की उम्मीद में जान का खतरा नहीं मोल लेना चाहिए।' <br />
फकीर के घर आकर कोई यह तकाजा नहीं करता कि जमीन या बाग का कर (टैक्स) दे। उसने कहा-'जनाब ने जो कुछ कहा, वह मेरी समझ में नहीं आया। बादशाह की नौकरी से वही डरता है, जो बेईमान होता है। जो कायर है उसी का हाथ कांपता है।' जिसका हिसाब साफ है,उसे हिसाब की जांच का क्या डर? <b> </b><span style="color: red;">शेख सादी</span></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-46601397583652619052011-06-07T23:33:00.000-07:002011-06-07T23:33:56.988-07:00फकीर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मैंने एक आदमी को देखा, जो सूरत तो फकीरों की-सी बनाए हुए था, लेकिन फकीरों जैसे गुण उसमें नहीं थे। महफिल में बैठा हुआ वह दूसरों की बुराइयां कर रहा था और उसने शिकायतों का पूरा दफ्तर खोल रखा था, धनवान लोगों की वह खासतौर पर बुराई कर रहा था।<br />
वह कह रहा था, 'फकीर की ताकत का बाजू बंधा हुआ है, तो अमीरों की हिम्मत की टांग टूटी हुई है।'<br />
जो दानी है, उनके पास पैसा नहीं है और जो पैसे वाले हैं, उनमें रहम नहीं है। मुझे उसकी बातें नागवार लगीं। मैंने कहा, 'ऐ दोस्त! धनवान ही गरीबों की आमदनी है। वही फकीरों की पूंजी है। जियारत करने वालों का मकसद भी वे ही पूरा करवाते हैं। वे मुसाफिरों को पनाह देते हैं। '<br />
अरब वाला कहता है, 'मैं अल्लाह से दुआ मांगता हूं कि वह मुझे गरीबी से बचाए और ऐसे पड़ोसी से बचाए, जो मुझसे मुहब्बत नहीं करता।'<br />
हदीस (मुहम्मद साहब के प्रवचन) में भी आया है कि 'गरीबी दोनों दुनियाओं में मुंह की कालिख बनती है।'<br />
वह फकीर मुझसे बोला, 'तूने वह तो सुन लिया, जो अरब ने कहा। क्या तूने यह नहीं सुना कि रसूल-अल्लाह ने फरमाया है कि, 'मैं फकीरों पर फख्र करता हूं?'<br />
मैंने कहा, 'चुप रह! रसूल-अल्लाह का इशारा उन फकीरों की तरफ है, जो खुदा की मर्जी में ही राजी रहते हैं और जो खुदा की भेजी हुई हर चीज को खुशी से कुबूल करते हैं, न कि वे लोग जो गूदड़ी पहन लेते हैं और खैरात में मिले टुकड़े बेचते फिरते हैं।'<b style="color: red;"> -शेख सादी</b></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-91210620052132598772011-06-06T03:10:00.000-07:002011-06-06T03:10:33.248-07:00तजुर्बा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">एक साल मैं बल्ख से वामिया जा रहा था। रास्ते में डाकुओं का खतरा था। हमारे आगे एक नौजवान चल रहा था। वह हथियारों से लैस था। दुनिया का कोई पहलवान उसकी कमर को जमीन पर नहीं लगा सकता था। मगर उसने न जमाना देख रखा था, न बहादुरों के नक्कारे की कड़क उसके कानों में पड़ी थी और न सवारों की तलवारों की चमक उसने देखी थी। न कभी वह दुश्मन के हाथ कैदी बना था। मैं और वह जवान आगे-पीछे चल रहे थे। जो पुरानी दीवार सामने आती, उसे वह बाजुओं के जोर से गिरा देता और जो पेड़ रास्ते में आता, उसे वह अपने पंजे की ताकत से उखाड़ देता और घमंड के साथ कहता, 'हाथी कहां है? आकर मेरे बाजुओं की ताकत को देखे! शेर कहां है? वह मर्दों के पंजों का जोर तो देखे!'<br />
हम इसी तरह चले जा रहे थे कि एक पत्थर के पीछे से दो डाकुओं ने सिर उभारा और हमसे लड़ने को तैयार हो गए। उनमें से एक के हाथ में एक लकड़ी थी और दूसरे के हाथ में एक मोंगरी। मैंने जवान से कहा, 'देखता क्या है? दुश्मन आ गए! जो जवांमर्दी और ताकत तुझमें हो, दिखा।' मैंने देखा कि जवान के हाथ से तीर-कमान गिर पड़ा और उसकी हड्डियों में कंपकंपी पैदा हो गई। फिर मेरे लिए सिवा इसके कोई चारा न रहा कि मैं जान बचाकर भाग जाऊं।<br />
बड़े कामों के लिए तजुर्बेकार को भेज, जो खूंखार शेर को भी अपनी अक्ल से कमन्द में फांस लाए। जवान कितना भी ताकतवर क्यों न हो, दुश्मन से लड़ते वक्त डर के मारे उसके सब जोड़ हिल जाते हैं। तजुर्बेकार आदमी लड़ाई के हुनर को जानता है। <span style="color: red;">- शेख सादी</span></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-78362546680280421722011-05-30T23:09:00.001-07:002011-05-30T23:09:50.935-07:00खर्च कम करें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">एक शहजादे को विरासत में बेहद दौलत मिल गई। वह ऐयाशी में डूब गया। कोई गुनाह ऐसा नहीं था, जो उसने नहीं किया। एक बार मैंने उसे समझाया,'साहबजादे! आमदनी बहते हुए पानी की तरह है और खर्च पनचक्की की तरह। इसलिए ज्यादा खर्च उसी को मुनासिब है जिसकी आमदनी लगातार होती रहती हो।' मल्लाह एक गीत गाया करते हैं, जिसका मतलब है कि यदि पहाड़ों पर बारिश न हो, तो दजला नदी एक ही साल में सूख जाए। क्योंकि जब यह दौलत खत्म हो जाएगी, तो तू मुसीबत उठाएगा और शर्मिन्दा होगा।' <br />
शहजादे ने मेरी नसीहत नहीं सुनी। कहने लगा, 'मौजूदा आराम को आने वाली परेशानियों से गंदला करना अक्लमन्दों का काम नहीं है। दिल को रौशन करने वाले दोस्त! कल का गम आज नहीं खाना चाहिए। मेरी उदारता की चर्चा सबकी जबान पर है।' मैंने देखा कि वह मेरी नसीहत मानने को हर्गिज तैयार नहीं है। मेरी गर्म सांस उसके ठंडे लोहे पर असर नहीं कर रही थी। इसलिए मैंने और कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा। मैं अक्लमंद लोगों के कहे पर अमल करने लगा कि जो तेरा फर्ज हो उसे दूसरों तक पहुंचा दे। फिर भी अगर वह न माने तो तुझ पर कोई इल्जाम नहीं। खुलासा यह कि जिसका मुझे डर था, वही हुआ। वह इतना गरीब हो गया कि दाने-दाने को मोहताज था। उसे फटेहाल देखकर मेरा दिल भर आया। मैंने दिल ही दिल में कहा-तुच्छ व्यक्ति अपनी मस्ती में डूबा हुआ मुसीबत के दिन की फिक्र नहीं करता। बहार के मौसम में पेड़ फल लुटाते हैं, तभी जाड़ों में उन्हें पतझड़ का सामना करना पड़ता है। <b><span style="color: red;">-शेख सादी</span></b></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-30118661207227885672011-05-30T05:30:00.001-07:002011-05-30T05:30:59.686-07:00अच्छी शिक्षा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">एक बहुत बड़ा विद्वान बादशाह के बेटे को पढ़ाता था। वह उसे बेहद डांटता और मारता रहता था। एक दिन मजबूर होकर लड़के ने पिता के पास जाकर शिकायत की और अपना जख्मी जिस्म भी दिखाया। बादशाह का दिल भर आया। उसने उस्ताद को बुलवाया और कहा, 'तू मेरे बच्चे को जितना झिड़कता और मारता है, इतना आम लोगों के बच्चों को नहीं, इसकी वजह क्या है?' <br />
उस्ताद बोला, 'वजह यह है कि यों तो सोच-समझकर बोलना और अच्छे काम करना सब लोगों के लिए जरूरी है, लेकिन बादशाहों के लिए खासतौर से जरूरी है। जो बात उनकी जुबान से निकलेगी या जो काम उनके हाथ से होगा, वह सारी दुनिया में मशहूर हो जाएगा, जबकि आम लोगों की बात और काम का इतना असर नहीं होता।' <br />
यदि किसी फकीर में सौ ऐब हैं, तो उसके साथी उसका एक ऐब भी न लेंगे, लेकिन बादशाह से एक नाजायज हरकत हो जाए, तो उसकी शोहरत मुल्क के एक सिरे से दूसरे सिरे तक हो जाएगी। 'इसलिए अन्य बच्चों के मुकाबले में बादशाह के बेटे के चरित्र को संवारने की उस्ताद को ज्यादा कोशिश करनी चाहिए।' जिस बच्चे को तू बचपन से अदब नहीं सिखाएगा, वह जब बड़ा होगा, तो उसमें कोई गुण नहीं होगा। जब तक लकड़ी गीली रहती है, उसे कैसे ही मोड़ लो। जब वह सूख जाती है, तो आग में रखकर ही उसे सीधा किया जा सकता है। जो लड़का सिखाने वाले का जुल्म बर्दाश्त नहीं कर सकता, उसे जमाने का जुल्म बर्दाश्त करना पड़ता है। बादशाह को उस काबिल उस्ताद की बात पसंद आई। उसने खुश होकर इनाम दिया। -<b style="color: red;">शेख सादी</b></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-5944842889560723042011-05-23T22:55:00.000-07:002011-05-23T22:55:20.688-07:00उस्ताद का जुल्म<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">पश्चिम के मुल्क में मैंने एक मदरसे में ऐसे उस्ताद को देखा जो बेहद चिड़चिड़ा, बच्चों को सताने वाला और कमअक्ल था। मुसलमान उसे देखकर बहुत दुखी होते। उसके सामने न किसी की हंसने की हिम्मत होती थी और न बात करने की। कभी वह किसी के गाल पर तमाचा मार देता और कभी किसी की पिंडली को शिकंजे में कस देता। जब लोगों को उसकी ज्यादतियों का पता चला तो उन्होंने उसे मार-मारकर वहां से निकाल दिया।<br />
उस मदरसे में एक नेक आदमी पढ़ाने के लिए रख दिया गया। यह आदमी परहेजगार था। कभी किसी से ऐसी बात नहीं कहता था, जिससे उसे तकलीफ पहुंचती। बच्चों के दिल में पहले उस्ताद का जो डर था, वह निकल गया। नए उस्ताद को उन्होंने फरिश्ते की तरह नेक पाया। नतीजा यह हुआ कि हर लड़का शैतान बन गया। उस्ताद की शराफत का फायदा उठाकर उन्होंने पिछला पढ़ा-लिखा भी सब भुला दिया। <br />
पढ़ाने वाला उस्ताद जब बच्चों पर सख्ती करना बन्द कर देता है, तो बच्चे बाजार में जाकर मदारी बन जाते हैं।<br />
दो हफ्ते बाद मैं उस मदरसे की तरफ से गुजरा। मैंने देखा कि अब वे लोग पहले वाले उस्ताद को मनाकर वापस ले आए थे। मैंने लाहौल पढ़ा और लोगों से पूछा कि उस शैतान को फिर से फरिश्तों का उस्ताद क्यों बना दिया गया?<br />
एक मसखरे और तजुर्बेकार बूढ़े ने मुझे जवाब दिया, 'एक बादशाह ने अपने बेटे को मकतब में बैठाया और उसकी बगल में चांदी की तख्ती दे दी, उसके हाथों सोने के पानी से उस तख्ती पर लिखवाया गया- 'उस्ताद का जुल्म बाप की मुहब्बत से बेहतर है।' <b><span style="color: red;">-शेख सादी</span></b></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-62930795615266722762011-05-22T23:51:00.000-07:002011-05-22T23:51:56.905-07:00उदारता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">मैंने एक गुम्बद पर घास से बंधे हुए कुछ ताजे फूलों के गुलदस्ते रखे हुए देखे। मैंने घास से कहा, 'तू फूलों के साथ रहने योग्य कहां थी!' <br />
वह रो पड़ी और बोली, 'चुप रह! शराफत का अर्थ यह नहीं है कि दोस्ती को भुला दिया जाए। माना कि मुझ में सुन्दरता, रंग और खुशबू नहीं है, किन्तु क्या मैं भी उसी बाग की घास नहीं हूं, जिसमें ये फूल खिलते है?' <br />
इसी प्रकार मैं उस खुदा के दरबार का गुलाम हूं, जो बड़ा रहीम है। मैं उसी की नेमतों का पला हुआ हूं। मुझे उस मालिक से सदा मेहरबानी की उम्मीद है। मेरे पास कोई पूंजी नहीं है और मैंने उसकी सेवा का पुण्य भी नहीं कमाया है, किन्तु वह मेरी जरूरतों को समझता है और यह भी जानता है कि मेरा उसके सिवा और कोई सहारा नहीं है। नियम है कि जब गुलाम बूढ़ा हो जाता है, तो मालिक उसे आजाद कर देता है। ऐ दुनिया बनाने-संवारने वाले सर्वशक्तिमान खुदा! तू महान है। तू अपने बूढ़े गुलाम 'सादी' को बख्श दे। ऐ सादी! तू खुदा की मर्जी पर भरोसा कर। तेरे लिए यही काबा है। तू तो खुदा का गुलाम है। उसी के रास्ते पर चल। जो इस दरवाजे से मुंह मोड़ेगा, वह अभागा है। उसे और कोई दरवाजा नहीं मिलेगा। एक आलम से लोगों ने पूछा, 'उदारता और पराक्रम में कौन-सा गुण श्रेष्ठ है?' उसने उत्तर दिया, 'जिसके पास उदारता है, उसे पराक्रम की आवश्यकता नहीं।'<br />
बहराम गौर की कब्र पर लिखा हुआ है कि सखावत यानी उदारता का हाथ जोर के बाजू से बेहतर है। हातिमताई तो न रहा, लेकिन उसका नेक नाम उसकी दरियादिली के कारण अमर रहेगा। <b style="color: red;">- शेख सादी</b></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-58872104066796854752011-05-17T23:46:00.000-07:002011-05-17T23:46:28.125-07:00फकीर कौन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">एक बादशाह मन-ही-मन फकीरों से नफरत करता था। एक समझदार फकीर इस बात को ताड़ गया। उसने कहा, 'ऐ बादशाह! हम लोग तुझसे, अधिक सुखी हैं। तेरे पास बहुत बड़ी सेना जरूर है, लेकिन मरेंगे हम और तू दोनों ही। अल्लाह ने चाहा, तो कयामत के दिन हमारी दशा तुझसे अच्छी होगी। 'दुनिया को जीतने वाला अपने इरादों में कामयाब हो सकता है, और फकीर रोटी को भी मोहताज रह सकता है, लेकिन जब मौत आएगी, तो कब्र में कफन के सिवा किसी के साथ कुछ भी न जाएगा।' जब एक दिन तेरी बादशाहत खत्म ही होगी, तो अच्छा है कि तू अभी फकीरी ले ले। देखने में फकीरी महज एक गूदड़ी और मुंडा हुआ सिर है, किन्तु उसका फल अपने मन को जीतना और शान्ति पाना है। वह फकीर नहीं है, जो फकीर होने का दावा तो करे, किन्तु लोग उसकी न सुनें, तो उनसे लड़ने के लिए खड़ा हो जाए। फकीरों में खुदा को याद करना, उसकी नेमतों का शुक्रिया अदा करना, उसकी खिदमत करना, इन सब गुणों का होना जरूरी है, जिसमें ये सब गुण हों, वही सच्चा फकीर है। भले ही वह शाही पोशाक पहनता हो। <br />
दूसरी ओर, जो दिन-भर मारा-मारा फिरे, नमाज न पढ़े, इच्छाओं का गुलाम हो, लालची हो, दिन-भर कामवासनाओं से घिरा रहे, जो भी हाथ लगे उड़ा ले और जो भी मुंह में आए बक डाले वह ऐयाश है। फकीर नहीं, चाहे वह गूदड़ी ही क्यों न पहनता हो। तेरा दिल तो साफ है नहीं और तूने कपड़े फकीरों के पहन रखे हैं। इस ढोंग से तुझे क्या मिलेगा? दरवाजे पर तू सतरंगे पर्दे मत लटका, यदि तेरे घर के अन्दर बिछाने के लिए टाट के सिवा कुछ भी नहीं है। <b style="color: red;"> - शेख सादी</b></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-20085681867018887882011-05-13T23:45:00.000-07:002011-05-13T23:45:12.952-07:00असली फकीर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">एक बादशाह किसी मुसीबत में फंसा हुआ था, उसने मानता मानी कि यदि उसकी मुसीबत टल गई, तो वह बहुत-सा धन फकीरों में बांट देगा। सौभाग्य से उसकी मुराद पूरी हो गई। उसने अपने एक विश्वासपात्र गुलाम को दिरहमों की थैली देकर कहा, 'जा, फकीरों में बांट आ।' लोग कहते हैं कि गुलाम बड़ा समझदार था। वह सारे दिन इधर-उधर घूमता फिरा। शाम को लौटने पर उसने दिरहमों की थैली को चूमकर बादशाह के कदमों में रखते हुए कहा, 'हुजूर, मैंने बहुत तलाश किया, लेकिन मुझे कोई फकीर मिला ही नहीं।' बादशाह ने कहा, 'यह कैसे हो सकता है? मेरे हिसाब से इस मुल्क में चार सौ से ज्यादा फकीर हैं।' <br />
गुलाम ने कहा, 'ऐ दुनिया के मालिक! जो असली फकीर है, वह तो धन लेता नहीं और जो धन चाहता है, वह असली फकीर नहीं।' बादशाह हंसा और कहने लगा, 'फकीरों और खुदापरस्तों में मुझे जितनी श्रद्धा है, इस शैतान को उनसे उतनी ही दुश्मनी है, लेकिन बात इसी की ठीक है।' <br />
जो फकीर दिरहम और दीनार ले ले, उसको तू छोड़ दे और दूसरे की तलाश कर। एक बात और, जब तक 'और चाहिए' की हवस बाकी है, किसी को फकीर और परहेजगार कहना ठीक नहीं। फकीर को न दिरहम चाहिए, न दीनार। यदि वह दरम और दीनार तलाश करने लगे, तो दूसरा फकीर तलाश करना चाहिए। जो खुदा से ही लौ लगाए रखता है, वह भीख के टुकड़ों के बिना भी अपनी फकीरी में मस्त रहता है। खूबसूरत अंगुली और कान की लौ, फीरोजे की अंगूठी और कुंडल के बिना भी अच्छी लगती है। <br />
<span style="color: red;">-शेख सादी</span></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-76413361586457428932011-05-13T23:32:00.000-07:002011-05-13T23:32:50.690-07:00नसीहत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">एक आलिम ने अपने वालिद से कहा, 'वाइजो' (धर्मोपदेशक) की लच्छेदार बातों का मेरे दिल पर कोई असर नहीं होता, क्योंकि उनके कौल (कथनी) और फेल (करनी) में बड़ा अन्तर होता है। दुनिया को वे दुनिया छोड़ने की नसीहत करते हैं और खुद अनाज और चांदी बटोरते फिरते हैं। जो वाइज सिर्फ 'वाज' ही देना जानता है और खुद उस पर अमल नहीं करता, उसके वाज का किसी पर असर नहीं होता। आलिम वही है, जो बुरे काम न करे। वह नहीं, जो महज दूसरों को नसीहत करे और खुद उस पर अमल न करे। जो आलिम एयाशी की जिन्दगी गुजारता है और खुद भटका हुआ है, वह दूसरों को क्या रास्ता दिखाएगा।' <br />
वालिद ने कहा, 'ऐ बेटे! महज इस खयाल से कि वाइजों के कौल और फेल में फर्क होता है, तुझे उनकी नसीहतों से नफरत नहीं करनी चाहिए। और न उनके फायदे से महरूम रहना चाहिए। 'तुमने उस अन्धे की मिसाल नहीं सुनी? वह कीचड़ में फंस गया था और कह रहा था, ऐ मुसलमानो! मेरे रास्ते में एक चिराग रख दो।' किसी ने उससे पूछा, 'जब तुझे चिराग ही नहीं दिखता, तो चिराग से तू क्या देखेगा?' वाइज की मजलिस बजाज की दुकान की तरफ है। जब तक तू कुछ नकद लेकर न जाएगा, तुझे कुछ नहीं मिलेगा। अकीदत के साथ नसीहत सुने बिना तेरे पल्ले कुछ न पड़ेगा।<br />
आलिम वाइज के कौल और फेल में फर्क हो, तो भी उसकी बात दिल से सुनो। 'तू यह गलत कहता है कि सोया हुआ सोए हुए को नहीं जगा सकता।' तुझे चाहिए कि नसीहत यदि दीवार पर लिखी हुई हो, तो उसे भी तत्काल अपने कानों में डाल ले। <br />
<blockquote><blockquote> <b style="color: red;"> शेख सादी </b></blockquote></blockquote></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-58340813628596905242011-05-11T01:48:00.000-07:002011-05-13T23:56:36.216-07:00बुरे साथी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> मैं अपने दमिश्क के दोस्तों के साथ रहते-रहते इतना ऊब गया कि कुद्स के जंगल की ओर निकल गया। वहां रहकर मैं जानवरों से प्रेम करने लगा। दुर्भाग्य से मुझे फिरंगियों ने कैद कर लिया और यहूदियों के साथ मुझे भी तराबलस में एक खाई की मिट्टी निकालने के काम पर लगा दिया। उधर से हलब का एक रईस गुजरा। वह मुझे पहचान गया और बोला, 'क्या हाल है? यह तकलीफ क्यों उठा रहा है?' मैंने कहा, 'क्या बताऊं? मैं जंगल की तरफ इसलिए भागा कि मेरा दिल खुदा से लगा रहे, लेकिन यहां मुझे अस्तबल में जानवरों के साथ बांध दिया गया।' उसे मेरी हालत पर रहम आ गया और दस दीनार देकर मुझे फिरंगियों की कैद से छुड़ा लिया। इसके बाद वह मुझे अपने घर ले आया। उसकी एक बेटी थी, जिसकी सौ दीनार महर पर मेरे साथ शादी कर दी। कुछ समय बाद मेरी बीवी मेरे साथ दुर्व्यवहार करने लगी। उसने मेरी जिंदगी दूभर कर दी। यदि किसी भले आदमी के घर में बदजबान औरत हो, तो उसके लिए दोजख यहीं है। बुरे साथी से खुदा बचाए। <br />
एक दिन मेरी बीवी ताना देने लगी, 'क्या तू वही आदमी नहीं, जिसे मेरे वालिद ने दस दीनार देकर कैद से छुड़ाया था?' मैंने कहा, 'हां, मैं वही हूं जिसे तेरे वालिद ने दस दीनार के बदले फिरंगियों से छुड़ाया और फिर सौ दीनार में तेरे हाथों गिरफ्तार करा दिया।' मैंने सुना कि एक बुजुर्ग ने बकरी को भेडि़ए के पंजे से छुड़ाया और रात को उसके गले पर छुरी फेर दी। बकरी कहने लगी - ऐ जालिम, भेडि़ए के पंजे से तूने मुझे छुड़ा लिया, लेकिन मेरी समझ में तू खुद भेडिय़ा था।<br />
-शेख सादी</div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-42254948826369081292011-05-06T23:32:00.001-07:002011-05-06T23:32:44.535-07:00दौलत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">एक फकीर जंगल के एक कोने में अकेला बैठा था। उधर से एक बादशाह गुजरा। फकीर ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। बादशाह का रोब फकीर पर न चला। यह देखकर बादशाह को क्रोध आ गया। वह कहने लगा, 'ये गुदड़ी पहनने वाले जानवर हैं। न इनमें लियाकत है और न इंसानियत!' बादशाह के साथ उसका वजीर भी था। वह फकीर के पास आकर बोला, 'खुदा के बन्दे! दुनिया का मालिक बादशाह तेरे पास से गुजरा, पर तूने उसका अदब नहीं किया और न कोई खिदमत की!' <br />
फकीर बोला, 'बादशाह से कह देना कि वह अदब और खिदमत की उम्मीद उससे रखे, जिसे उससे कुछ इनाम पाने की गरज हो। दूसरी बात यह कि बादशाह रिआया की हिफाजत के लिए होता है। रिआया उसकी खिदमत के लिए नहीं होती।' बादशाह फकीर का चौकीदार है। भेड़ चरवाहे के लिए नहीं होती। चरवाहा उसकी देखभाल के लिए होता है। यदि एक को अपनी इच्छा के अनुसार सब-कुछ मिला हुआ है और दूसरे का दिल रंज और तकलीफ से जख्मी हो रहा है, तो थोड़े दिन ठहर जा। तू देखेगा कि जालिम के सिर को मिट्टी खा गई। यदि कोई कब्रों को खोदकर देखे तो अमीर और फकीर में अन्तर करना सम्भव नहीं होगा। बादशाह को फकीर की बात अच्छी लगी। उसने फकीर से कहा, 'मुझसे कुछ मांग?' फकीर बोला, 'मैं तुमसे यही चाहता हूं कि तुम दुबारा मुझे परेशान न करो।' बादशाह ने कहा, 'अच्छा मुझे कुछ नसीहत कर।' फकीर बोला, 'कुछ कर ले, क्योंकि अभी तो दौलत तेरे पास है। दौलत और मुल्क हाथोहाथ चलते रहते हैं, सदैव किसी एक के पास नहीं रहते। <br />
<b style="color: red;">शेख सादी</b></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-44244347354911055462011-05-06T22:31:00.000-07:002011-05-06T22:31:06.036-07:00परिन्दा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">सुबह एक परिन्दा चहचहा रहा था। उसने मेरी अक्ल, मेरा सब्र व मेरे होशो-हवास सब खो दिए। जब मेरे एक दोस्त को मालूम हुआ तो वह बोला, 'मुझे यकीन नहीं होता कि परिन्दे की आवाज से इंसान कैसे बेखुद हो सकता है?' मैंने कहा, 'इंसान के लिए यह मुनासिब नहीं है कि परिन्दे तो तस्बीह पढ़ रहे हों और वह चुपचाप बैठा रहे।' <br />
एक बार हजाज के सफर में मेरे साथ कुछ फकीर भी जा रहे थे। रास्ता काटने के लिए वे सभी गाना गाते और शेर पढ़ते जा रहे थे। इसी काफिले में एक फकीर था, जो सबसे अलग-अलग रहता था। वह अपने ऊंट पर बैठा अकेला चला जा रहा था। जब हम नखेल-बनी-हलाल पर पहुंचे तो अरब के किसी कबीले से एक हब्शी लड़का निकला। उसने अल्लाह को पुकारते हुए ऐसा गाना गाया कि पक्षी आकाश से उतर आए। मैंने देखा, उस फकीर का ऊंट मस्त होकर नाचने लगा और उसे जमीन पर पटककर जंगल की ओर भाग गया। मैंने उस फकीर से कहा, 'शेख साहब! उस हब्शी ने अल्लाह की प्रशंसा में जो गाना गाया उससे जानवर तक प्रभावित हो गए; किंतु आप वैसे के वैसे ही रहे।' <br />
जानते हो मुझसे सुबह के वक्त चहचहाने वाली बुलबुल ने क्या कहा? उसने मुझसे कहा, 'तू कैसा आदमी है, जो इश्क से बेखबर है? अरबी शेर से ऊंट भी मस्ती में आ जाते हैं और खुदा की याद में खो जाते हैं। जंगल में जब हवा चलती है, तो बान की शाखें झूमने लगती है; किंतु पत्थर ज्यों का त्यों रहता है। संसार की हर चीज उसे पैदा करने वाले का नाम ले-लेकर शोर मचा रही है; लेकिन इसे सुनता वही है, जिसके कान सुन सकते हों।' <br />
<b> शेख सादी</b></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-9378246882110038292011-05-01T23:25:00.000-07:002011-05-01T23:25:43.215-07:00संतोष कीजिए<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">एक बादशाह मरते दम तक किसी को अपना वारिस नहीं बना सका। अन्तिम समय में उसने घोषणा की कि उसकी मृत्यु के अगले दिन सुबह जो व्यक्ति सबसे पहले उस शहर के दरवाजे से प्रवेश करे, उसी को बादशाह बना दिया जाए। संयोग से वह व्यक्ति एक फकीर था, जिसने फटे चीथड़ों पर पैबन्द लगाकर शरीर ढका था। वजीरों और जमीरों ने उसी के सिर पर ताज रख दिया। एक दिन उसका एक पुराना साथी उधर आ निकला और उससे बोला, 'अल्लाह का लाख-लाख शुक्र है कि तेरे नसीब ने जोर मारा और तुझे बादशाहत मिल गई। तेरे पैरों के कांटे निकल गए और तुझे उनके स्थान पर फूल मिले। किसी ने ठीक कहा है कि मुसीबत के बाद सुख के दिन आते हैं।' कली कभी फूल बन जाती है और कभी मुरझाकर गिर जाती है। पेड़ कभी नंगा हो जाता है और कभी पत्तियों से लद जाता है।<span style="background-color: white;"></span><br />
वह बोला, 'अरे भाई, मेरे साथ हमदर्दी कर और मेरे लिए दुआ कर। जब तूने मुझे पहले देखा था, तब मुझे केवल एक रोटी की चिन्ता थी। अब दुनिया भर की है। दरअसल, इस दुनिया से बढ़कर कोई मुसीबत नहीं है। यह न मिले, तो दुख देती है और मिले, तो भी दुख देती है। यदि तू धनवान होना चाहता है, तो सन्तोष कर।' यदि अमीर दामन भर कर सोना लुटा दे, तो इसे कोई बहुत बड़ा काम मत समझ। मैंने सुना है कि फकीर का सब्र अमीर की खैरात से कहीं बढ़कर है। यदि बहराम (इराक का एक विलासी बादशाह) एक गोरखर (जंगली गधा) भी भून कर ले आए, तो उसकी कीमत टिड्डी के उस पैर के बराबर भी नहीं होगी, जिसे एक चींटी घसीटकर ले आती है। <b style="background-color: white; color: red;">शेख सादी</b></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-6001819278263750072011-04-28T22:46:00.000-07:002011-04-28T22:46:17.060-07:00नेक बनो<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">एक पापी पर अल्लाह की ऐसी कृपा हुई कि वह पहुंचे हुए फकीरों में रहने लगा। पहुंचे हुए फकीरों की संगति से उसकी बुरी आदतें अच्छाइयों में बदल गईं। उसका मन हमेशा खुदा में ही रहने लगा। उसने कामवासना पर भी काबू पा लिया। उसकी प्रसिद्धि देखकर उसके दुश्मन उसे ताना दिया करते थे। वे कहते कि उसकी हालत अब भी ज्यों-की-त्यों है। उसकी परहेजगारी दिखावटी और बनावटी है। उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। <br />
अगर कोई गुनाहगार गुनाहों से तौबा कर ले, तो मुमकिन है कि खुदा उसे माफ कर दे; लेकिन यह मुमकिन नहीं है कि वह दुश्मनों की तानेबाजी से बच जाए। जब वह लोगों के ताने सुनते-सुनते परेशान हो गया, तो अपने पीर के पास पहुंचा और उनसे अपना दु:ख कहा। उन्होंने कहा, 'तू खुदा की इस मेहरबानी का शुक्रिया कैसे अदा कर सकता है कि लोग तुझे जैसा समझते हैं, उससे तू कहीं अच्छा है? तू यह शिकायत कब तक करता रहेगा कि तेरा बुरा चाहने वाले और तुझसे जलने वाले तेरी निन्दा करते रहते हैं? लोग तुझे अच्छा कहें और तू बुरा हो, इससे तो कहीं अच्छा है कि तू नेक बन, भले ही लोग तुझे बुरा कहें।' यदि लोग मेरी प्रशंसा करते हों और मुझमें बुराइयां भरी हों, तो मुझे लोगों से डरना चाहिए। बेशक मैं अपने पड़ोसियों की आंखों से छिपा हुआ हूं, लेकिन मेरे अन्दर-बाहर की सब बातें अल्लाह तो जानता है। मैंने अपना दरवाजा आदमियों के आने-जाने के लिए बन्द कर रखा है ताकि वे मेरी बुराइयों को न फैला सकें, लेकिन दरवाजा बन्द करने से भी क्या फायदा? खुदा तो छिपी और खुली हुई सारी बातों को जानता है। <br />
<b> शेख सादी</b></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-82185228047037818072011-04-26T22:51:00.000-07:002011-04-26T22:51:26.294-07:00शागिर्द ऐसे भी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">एक पहलवान कुश्ती लड़ने में बहुत माहिर था। उसका एक शागिर्द भी था, जिसे वह बहुत चाहता था। उसने शागिर्द को तीन सौ उनसठ दांव-पेंच सिखा दिए थे, किन्तु एक जो बच रहा था, उसे सिखाने में वह आनाकानी करता रहा। कुछ समय बाद वह शागिर्द भी ताकत और हुनर के लिए मशहूर हो गया। धीरे-धीरे उसे इतना घमंड हो गया कि वह बादशाह के पास जाकर बोला, 'हुजूर, उस्ताद की इज्जत मैं इसलिए करता हूं, क्योंकि वह मेरे बुजुर्ग हैं और उन्होंने मुझे पाला-पोसा है। मैं ताकत में उनसे कम नहीं हूं और जहां तक हुनर का सवाल है, मैं उनके बराबर ही हूं।'<br />
बादशाह को लड़के की यह बात बुरी लगी। उसने दोनों के बीच कुश्ती करवाने का हुक्म दे दिया। उस्ताद समझ गया कि लड़के में उससे ज्यादा ताकत है। चूंकि उसने एक दांव उस लड़के को अभी तक नहीं सिखाया था। उसी दांव से उसने लड़के का मुकाबला किया। लड़का इस दांव का काट नहीं जानता था। उस्ताद ने दोनों हाथों से उसे अपने सिर के ऊपर उठा लिया और जमीन पर दे पटका। लोगों ने खुशी से शोर मचाया। बादशाह ने प्रसन्न होकर उस्ताद को इनाम दिया। उस लड़के को उसने फटकारा, 'तूने अपने उस्ताद से ही मुकाबले का दावा किया और कुछ कर भी न सका।'<br />
लड़के ने उत्तर दिया, 'ऐ दुनिया के मालिक! उस्ताद ने कुश्ती का एक दांव मुझसे छिपा रखा था। आज उसी दांव से इन्होंने मुझे हरा दिया।' उस्ताद ने कहा, मैंने इसी दिन के लिए यह दांव इससे बचाकर रखा था। अक्लमंदों ने कहा है- दोस्त को इतनी ताकत न दे कि यदि वह चाहे तो तुझ से दुश्मनी कर सके। <br />
<b>- शेख सादी</b></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1568931743452315782.post-53379445332121368462011-04-25T22:22:00.000-07:002011-04-25T22:24:21.344-07:00आह से तबाही<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
एक धनवान व्यक्ति बड़ा जालिम था। उसके बारे में बताया जाता है कि वह गरीब मजदूरों से कम दाम में लकडि़यां खरीदकर उन्हें भारी मुनाफे के साथ मालदार लोगों को बेच दिया करता था। एक फकीर ने उस जालिम के पास जाकर कहा,' तू सांप तो नहीं कि जिसको देखता है, उसे डस लेता है? या तू उल्लू है कि जहां बैठता है, उस जगह को उजाड़ देता है?' अगर तेरा जोर हम पर चल गया तो क्या उस खुदा पर भी चल जाएगा, जो भाग्य की बात जानता है? जमीन वालों पर जुल्म न कर, नहीं तो लोगों की बद-दुआएं आसमान तक जा पहुंचेगी। धनवान व्यक्ति को फकीर ये बातें बुरी लगीं। उसने मुंह फेर लिया और फकीर की नसीहत पर कोई ध्यान ही नहीं दिया। वह उसी तरह से गरीबों पर जुल्म करता रहा और परेशान करता रहा। एक बार रात में उसके रसोईघर में रखी हुई लकडि़यों में आग लग गई। उसके पास जो भी सामान था, वह सबका-सब इस आग में जल गया। वह इतना गरीब हो गया कि नर्म बिस्तरों की जगह अब गर्म राख में बैठने की नौबत आ पहुंची। <br />
एक बार वही फकीर उसके घर के पास से गुजरा। उसने सुना कि धनवान व्यक्ति अपने दोस्तों से कह रहा था, 'मैं यह नहीं जान सका कि मेरे घर में यह आग कहां से लगी?'<br />
फकीर बोल पड़ा, 'गरीबों के दिल के धुएं से।'<br />
अक्लमंदों ने कहा है कि जख्मी दिलों के धुएं से डरता रह। अन्दर का जख्म कभी-न-कभी जाहिर जरूर होता है। जहां तक हो सके, किसी का दिल न दुखा। तू नहीं जानता कि एक आह सारे जहान को तबाह कर देती है।<br />
<b> शेख सादी</b></div>दास्तानेंhttp://www.blogger.com/profile/15878261387638516934noreply@blogger.com0